15 May 2025

1970s की वो 10 सदाबहार फिल्में जो दिल में आज भी जिंदा हैं!

 नमस्कार मित्रों!

चलिए आज समय की उस दहलीज पर चलते हैं, जहां 1970 का दशक अपनी शानदार फिल्मों के लिए अमर हो चुका है।
ये फिल्में सिर्फ कहानियाँ नहीं थीं — ये हमारी भावनाओं, संबंधों और समाज का सजीव चित्रण थीं।
आज हम बात करेंगे उस दशक की 10 यादगार फिल्मों की, जिन्हें देखकर आज भी दिल वही ताजगी महसूस करता है।


1. शोले (1975)

अगर कभी भारतीय सिनेमा की सबसे असरदार फिल्मों की बात हो, तो 'शोले' का नाम ज़रूर आता है।
रमेश सिप्पी की इस फिल्म में हर किरदार ने दर्शकों के दिल में जगह बनाई — चाहे जय-वीरू की दोस्ती हो या गब्बर सिंह की डरावनी मौजूदगी।
इसके संवाद आज भी ज़ुबान पर चढ़े रहते हैं, और फिल्म एक्शन, भावना और रोमांच का आदर्श संगम है।

2. दीवार (1975)

यश चोपड़ा द्वारा निर्देशित इस फिल्म ने समाज में हो रहे बदलावों और पारिवारिक मूल्यों को गहराई से दिखाया।
अमिताभ बच्चन ने विजय के किरदार में सामाजिक विद्रोह और अंदरूनी टूटन को जीवंत कर दिया।
"मेरे पास मां है" — यह संवाद आज भी क्लासिक की श्रेणी में गिना जाता है।

3. आनंद (1971)

राजेश खन्ना द्वारा निभाया गया ‘आनंद’ का किरदार एक प्रेरणा है — एक ऐसा व्यक्ति जो जीवन को उसके अंतिम क्षण तक मुस्कान के साथ जीता है।
अमिताभ बच्चन का गंभीर किरदार इस कहानी को संतुलन देता है।
“कहीं दूर जब दिन ढल जाए…” जैसे गाने आज भी मन को छू जाते हैं।


4. अमर प्रेम (1972)

यह फिल्म समाज के बनाए दायरों से परे दो इंसानों की आत्मीयता की कहानी है।
राजेश खन्ना और शर्मिला टैगोर ने एक अलग ही भावनात्मक गहराई दी है।
"पुष्पा, मुझे आंसू पसंद नहीं..." — इस संवाद की लोकप्रियता आज भी बरकरार है।

5. अभिमान (1973)

ऋषिकेश मुखर्जी की यह कृति एक दंपति की कहानी है, जहां संगीत के माध्यम से ईर्ष्या और प्रेम की टकराहट को दिखाया गया है।
अमिताभ बच्चन और जया भादुरी की जोड़ी ने रिश्तों की पेचीदगियों को बखूबी निभाया।
फिल्म के गीत आज भी संगीतप्रेमियों की पसंद बने हुए हैं।

6. चुपके चुपके (1975)

हास्य फिल्मों में एक अनमोल रत्न — यह फिल्म भाषा और पहचान के इर्द-गिर्द घूमती है।
धर्मेंद्र, अमिताभ बच्चन और शर्मिला टैगोर की कॉमिक टाइमिंग इसे बार-बार देखने लायक बनाती है।

7. जंजीर (1973)

यह फिल्म अमिताभ बच्चन के करियर की दिशा बदलने वाली साबित हुई।
एक ईमानदार अफसर की कहानी जो अन्याय के खिलाफ अकेले खड़ा होता है।
इस फिल्म ने "एंग्री यंग मैन" की छवि को जन्म दिया।

8. सत्यम शिवम सुंदरम (1978)

राज कपूर की यह फिल्म दिखाती है कि असली सुंदरता शरीर में नहीं, आत्मा में होती है।
ज़ीनत अमान का किरदार इस सोच को चुनौती देता है और दर्शकों को सोचने पर मजबूर करता है।

9. मुकद्दर का सिकंदर (1978)

यह फिल्म अधूरी मोहब्बत और आत्म-बलिदान की मार्मिक गाथा है।
अमिताभ बच्चन, रेखा और राखी की त्रिकोणीय प्रेम कहानी में भावनाओं की गहराई झलकती है।
गीत और संवाद आज भी कानों में मिठास घोलते हैं।

10. अनामिका (1973)

एक रहस्यमयी प्रेम कहानी जिसमें जया भादुरी और संजीव कुमार ने गजब की भूमिका निभाई।
फिल्म में रोमांच और भावना दोनों का अच्छा तालमेल है जो दर्शकों को अंत तक बाँधे रखता है।

तो दोस्तों, ये थीं 70 के दशक की वो फिल्में,
जो सिर्फ सिनेमा नहीं थीं, बल्कि एक भावनात्मक अनुभव थीं।
अगर आपने इन्हें नहीं देखा है, तो समय निकालकर जरूर देखिए — ये फिल्में आज भी सिखाती हैं कि सिनेमा सिर्फ मनोरंजन नहीं, जीवन का आईना भी हो सकता है।

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मिलते हैं अगली वीडियो में — तब तक के लिए, नमस्कार!

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