11 Dec 2025

‘अजब दास्ताँ है ये’ की अनकही दास्तान | Lata Mangeshkar Classic

Indian 2002, [11-12-2025 11:37]

“दोस्तो… मैं गीतांजलि,

और आप देख रहे हैं हमारा चैनल — Knowledge Hub Information Center।

आज हम जानने वाले हैं एक ऐसा गीत,

जो केवल एक गाना नहीं…

बल्कि एक अद्भुत कहानी, भावनाओं का समंदर, और सिनेमा के सुनहरे दौर की याद है।


जी हाँ…

हम बात कर रहे हैं 1960 की फिल्म ‘Dil Apna Aur Preet Parai’ के

अमर गीत —


‘अजब दास्ताँ है ये’


और हाँ, दोस्तो…

इस गाने का लिंक डिस्क्रिप्शन में है भी,

ताकि आप कहानी सुनने के बाद इसे फिर से पूरी तरह महसूस कर सकें।


तो चलिए, शुरू करते हैं यह संगीत और कहानी की अनकही यात्रा।”

“साथियो, 1960 का बॉम्बे फिल्म इंडस्ट्री का वह सुनहरा दौर था

जब फ़िल्में काला-सफ़ेद थीं,

लेकिन संगीत दिलों को रंगीन कर देता था।


इस फिल्म के निर्माता और निर्देशक किशोर साहू थे।

मुख्य कलाकार थे राज कुमार, मीना कुमारी, और गीत पर दिखाई गई अभिनेत्री नदिरा।


इस समय बॉलीवुड में संगीत का स्वर्णिम समय था।

संगीतकार शंकर–जयकिशन की जोड़ी

सभी स्टूडियो में नए प्रयोग करती थी।

शंकर साहब की वेस्टर्न ऑर्केस्ट्रा और जयकिशन की भावुक हिंदुस्तानी मेलोडी

जब साथ मिलती, तो जादू बन जाता।


और यहीं जन्म हुआ —

‘अजब दास्ताँ है ये’ की अनमोल धुन।”


गीतकार शैलेंद्र का योगदान — दर्द से कविता


“अब बात करते हैं शब्दों की…

गीतकार शैलेंद्र उस समय अपने निजी जीवन में

काफी कठिन दौर से गुजर रहे थे।


पर जैसे एक सच्चा कवि अपने दर्द को छुपाता नहीं…

बल्कि उसे काव्य में बदल देता है,

उसी स्थिति से निकली यह पंक्ति जन्मी —


‘अजब दास्ताँ है ये, कहाँ शुरू कहाँ ख़त्म…’


साथियो…

इन शब्दों में आपको उनकी उलझन, जीवन की अनिश्चितता और दर्द की खामोशी महसूस होगी।

बस यही शब्द, यही भाव इस गीत को इतना खास बनाते हैं।”


लता मंगेशकर की आवाज़ — गीत में जान डालना


“अब बात आती है उस आवाज़ की,

जिसने इस धुन और शब्दों को जिंदा कर दिया।



कहा जाता है कि रिकॉर्डिंग के दौरान लता जी ने

गीत को बिना किसी रीटेक के एक ही टेक में गाया।

स्टूडियो में मौजूद सभी लोग

बस देखते ही रह गए थे।


उनकी आवाज़ ने शब्दों में छिपी पीड़ा,

धुन में बहती संवेदनाओं और

संगीत की मिठास को जीवन दे दिया।


और यही कारण है कि आज भी

‘अजब दास्ताँ है ये’ सुनते ही

दिल में एक हल्का सा सिहरन आ जाता है।”


फिल्म में इसका इस्तेमाल — कहानी के मोड़ पर अभिनेत्री नदिरा पर फिल्माया गया।

लेकिन दिलचस्प बात यह है कि

यह गीत फिल्म की कहानी के उस हिस्से पर रखा गया

जहाँ रिश्ते उलझते और खुलते हैं।


शायद इसलिए शैलेंद्र की पंक्तियाँ इतनी फिट बैठती हैं—


‘कहाँ शुरू कहाँ ख़त्म…’


यह सिर्फ़ एक गाना नहीं,

बल्कि कहानी का भावनात्मक ट्रांज़िशन भी है।”


रिलीज़ के बाद — प्रभाव और लोकप्रियता


“फिल्म रिलीज़ हुई… और यह गीत तुरंत लोगों के दिलों में उतर गया।


रेडियो सीलोन पर हफ्तों टॉप पर  रहा. 


यह गीत  लता जी  के ‘क्लासिक’ कलेक्शन में शामिल है. 


शंकर–जयकिशन के संगीत को फ़िल्मफ़ेयर द्वारा सराहा गया


और शैलेंद्र की कलम को मिला वो सम्मान जिसके वह हक़दार थे


साथियो, आज 60 साल बाद भी

यह गीत उतना ही ताज़ा महसूस होता है

जितना उस दिन जब इसे पहली बार सुना गया था।”


“दोस्तों, कुछ मज़ेदार बातें भी हैं:


कहा जाता है कि लता जी ने गाने के दौरान इतनी भावुकता दिखाई कि

रिकॉर्डिंग के बाद स्टूडियो में सब कुछ कुछ देर के लिए शांत रहा।


शैलेंद्र ने इस गीत की पंक्तियों को लिखते समय

कभी-कभी अपने सामने का कागज़ फाड़ दिया करता था,

जब उन्हें लगता कि शब्द पूरी तरह से भाव नहीं ला रहे।


शंकर–जयकिशन की जोड़ी ने इस गीत में

भारतीय क्लासिकल और वेस्टर्न ऑर्केस्ट्रा का अद्भुत मिश्रण किया,

जो उस समय के लिए क्रांतिकारी था।”




“तो दोस्तों…

यह थी ‘अजब दास्ताँ है ये’ के पीछे की असली कहानी —

शब्द, संगीत और आवाज़ की अनकही यात्रा।


यदि आप इस गीत का पूरा आनंद लेना चाहते हैं,

तो लिंक डिस्क्रिप्शन में है भी।


मैं हूँ गीतांजलि,

और आप देख रहे थे — Knowledge Hub Information Center।


अगली बार हम किसी और पुराने क्लासिक गीत की

रोचक कहानी लेकर आएंगे।


नमस्कार, धन्यवाद!”


Indian 2002, [11-12-2025 11:49]

“दोस्तो! ये है ‘अजब दास्ताँ है ये’ की अनकही दास्तान | Lata Mangeshkar Classic |

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