3 May 2020

लैजेंड एक्टर महमूद, जिसने राजेश खन्ना को थप्पड़ लगाकर स्टारपना निकाल दिया था



 अमिताभ बच्चन से बहुत नाराज हुए

महमूद अंतिम दिनों में अमिताभ से ख़फा थे. एक इंटरव्यू में उन्होंने कई और बातों के साथ ख़ुद इस बारे में कहा, “मेरा बेटा अमित आज 25 साल का हो गया है. फिल्म लाइन में. अल्ला उसे सेहत दे. ऊरूज पर रखे. जिसको मैंने काम दिया, मैं उसके पास काम मांगने जाऊं तो मुझे शर्म नहीं आएगी? इसलिए मैं नहीं गया. जिस आदमी को सक्सेस मिले उसके दो बाप हो जाते हैं. एक बाप वो जो पैदा करता है और एक बाप वो जो पैसा कमाना सिखाता है. तो पैदा करने वाला बाप तो बच्चन साहब है हीं और मैं वो बाप हूं जिसने कमाना सिखाया. अपने साथ में रख के. घर में रख के. पिक्चरें दिलाईं. पिक्चरों में काम दिया. बहुत इज्जत करता है अमित मेरी. बैठा होगा, पीछे से मेरी आवाज सुनेगा, खड़ा हो जाएगा. लेकिन आखिर में मुझे इतना फील हुआ
जब मेरा बाइपास हुआ, ओपन हार्ट सर्जरी. उसके फादर बच्चन साहब (हरिवंशराय) गिर गए थे तो मैं उन्हें देखने के लिए अमित के घर गया, एक कर्टसी है. और उसके एक हफ्ते बाद जब मेरा बाइपास हुआ तो अमित अपने वालिद को लेकर वहां आए ब्रीच कैंडी (अस्पताल), जहां मैं भर्ती था, लेकिन अमित ने वहां ये दिखा दिया कि असली बाप असली होता है और नकली बाप नकली होता है. उसने आके मुझे हॉस्पिटल में विश भी नहीं किया. मिलने भी नहीं आया. एक गेट वेल सून का कार्ड भी नहीं भेजा. एक छोटा सा फूल भी नहीं भेजा. ये जानते हुए कि भाईजान भी इसी हॉस्पिटल में हैं. खैर, मैं बाप ही हूं उसका और कोई बद्दुआ नहीं दी. आई होप, दूसरों के साथ ऐसा न करे.”

 महमूद गॉडफादर थे बच्चन के

अमिताभ खुद मानते हैं कि महमूद ने उन पर शुरू से बतौर एक्टर पूरा भरोसा किया. तब भी जब तमाम तरह के लोग उनकी नाकामी की भविष्यवाणी कर चुके थे. महमूद का जब 23 जुलाई 2004, में निधन हो गया तो अमिताभ ने लिखा था:

उन्हें हम भाईजान कहते थे. वे हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के महानतम कॉमेडियन हैं. उनके भाई अनवर अली और मैं, मेरी पहली फिल्म ‘सात हिंदुस्तानी’ के सेट पर मिले. वो भी एक रोल कर रहे थे. तब से हम करीबी दोस्त बन गए. मैं उनके साथ उनके अपार्टमेंट में रहा जो एक बड़े कॉम्पलेक्स में बना हुआ था, जो महमूद भाई का था. उसमें उनका पूरा बड़ा परिवार रहता था. महमूद भाई मेरे करियर के शुरुआती ग्राफ में मदद करने वालों में से थे. उनका मुझ पर पहले दिन से ही भरोसा था. वे मुझे न जाने क्यों ‘डेंजर डायबॉलिक’ कहकर बुलाते थे. वे पहले प्रोड्यूसर थे जिन्होंने मुझे लीड रोल दिया था – ‘बॉम्बे टु गोवा’ में.




बच्चन ने एक बार कहा था कि उन्होंने ‘सात हिंदुस्तानी’, ‘रेशमा और शेरा’, ‘रास्ते का पत्थर’, ‘बंसी बिरजू’, ‘बंधे हाथ’ जैसी कई फिल्में की थीं लेकिन वे धड़ाधड़ करके गिर गईं. परिणाम ये हुआ कि वे दूसरी फिल्मों से भी बाहर किए जाने लगे. अब उनका पूरा आत्मविश्वास खत्म हो गया था. उन्हें अंधकारमय जीवन के अलावा कुछ भी नजर नहीं आ रहा था. वे हताश-निराश होकर अपना बोरिया-बिस्तर समेटने लगे. पूरा मन बना लिया था कि वापस चले जाएंगे लेकिन जैसे ही महमूद के भाई अनवर को ये पता चला, उन्होंने जाने से रोक लिया. काफी हौसला अफजाई की. बच्चन ने कहा था, “उस वक्त अगर वो नहीं होते तो शायद आज मैं भी यहां नहीं होता.” तब महमूद ने उन्हें ‘बॉम्बे टु गोवा’ में साइन किया था. उन्होंने कमर्शियल सिनेमा के गुण सिखाए.
#3 जब रेलवे स्टेशन पर कपड़े उतारने लगे

महमूद के पिता मुमताज अली 40 और 50 के दशक में जाने-माने एक्टर और डांसर थे. तमिल मूल के महमूद बचपन से भी फनी थे. एक बार उनकी मां ने उन्हें रेलवे स्टेशन पर पकड़ लिया जब वे भागने की कोशिश कर रहे थे. बच्चे ही थे. तो मां ने खूब सुनाया. बोलीं कि ये जो कपड़े भी तुमने पहन रखे हैं ये तुम्हारे बाप के पैसों के हैं. इतना सुनना था कि महमूद अपने कपड़े उतारने लगे. खैर, बाद में उन्होंने कमाई करनी शुरू कर दी. छोटे-मोटे काम करते थे, अंडे बेचते थे. बाद में मीना कुमारी को टेबल टेनिस खिलाते थे. राजकुमार संतोषी के पिता डायरेक्टर थे, उनकी गाड़ी चलाते थे.

 गुरु दत्त का फोटो बेडरूम में लगाकर रखा

बच्चे थे तब वे पिता के साथ फिल्म स्टूडियोज़ में जाया करते थे और ‘किस्मत’ (1943) और ‘संन्यासी’ (1945) जैसी फिल्मों में मामूली रोल भी किए. लेकिन मीना कुमारी की बहन मधु से शादी करने और एक बच्चे के बाप बनने के बाद महमूद ने पैसे कमाने के लिए एक्टिंग शुरू की. उन्हें पहला प्रमुख रोल राज कपूर और माला सिन्हा स्टारर 1958 में रिलीज हुई फिल्म ‘परवरिश’ में मिला था. वे राज कपूर के भाई के रोल में थे. बाद में गुरु दत्त जैसे फिल्मकार ने उन्हें ‘सीआईडी’ और ‘प्यासा’ जैसी फिल्मों में काम देकर उनका मान बढ़ाया. इस बात को महमूद कभी नहीं भूले. उन्होंने अपने बेडरूम में गुरुदत्त का एक बड़ा फोटोग्राफ लगाकर रखा.

 ‘कुंवारा बाप’ उनकी ख़ुद की जिंदगी की कहानी थी

उनकी सबसे यादगार फिल्म ‘कुंवारा बाप’ को माना जाता था. ये उनकी असल कहानी थी. उसमें उन्होंने एक गरीब रिक्शे वाले का रोल किया और पोलियो से ग्रस्त उनके 15 साल के बेटे का रोल मैकी ने किया. मैकी यानी मकदूम अली, जो महमूद के तीसरे नंबर बेटे थे. उन्हें असल में पोलियो हो गया था. महमूद विदेश ले गए. बहुत इलाज करवाया लेकिन मैकी वैसे ही रहे. फिल्म में उन्होंने इसी कहानी को अपने अंदाज में दिखाया. वे दिखाना चाहते थे कि उन जैसा अमीर आदमी इतने पैसे लगाकर भी अपने अजीज़ बेटे का इलाज करवाने में लगा है, उस गरीब बाप का क्या हाल होता होगा जिसके पास पैसे भी नहीं हैं. इसी फिल्म के गाने ‘सज रही गली मेरी अम्मा चुनर गोटे में.. ‘ में उनके पिता मुमताज अली भी नाचते दिखे थे. ये एकमात्र समय था जब महमूद के परिवार की तीन पीढ़ियां साथ में थीं.

 नाचने के नाम पर अमिताभ रो रहे थे, महमूद ने ट्रिक की

महमूद ने बच्चन की एक्टिंग और डांस स्किल्स पर बात करते हुए कहा था, “मैं एक्टर के तौर पर अमित की इंटेंसिटी से प्रभावित हुआ था. उसकी आंखें उसकी आवाज से ज्यादा बोलती थीं. लेकिन अमित को एक टिपिकल बॉलीवुड एक्टर के रूप में तब्दील करना बहुत मुश्किल था. क्योंकि वो बहुत शर्मीला था और जब बात नाचने की आती थी तो एकदम भोंदू था. ‘बॉम्बे टू गोवा’ में एक गाने में वो नाच नहीं पाया. फिर दूसरा गाना जो बस में फिल्माया गया ‘देखा न हाय रे सोचा न हाय रे’ उसके दौरान भी यही हाल रहा. शूटिंग में पहुंचा तो देखा कि वो अपने कमरे में था शूट के लिए नहीं आया. 102 डिग्री बुखार था. कमरे में पहुंचा तो रो रहा था. कि भाईजान मुझसे नहीं होगा डांस. सुबक रहा था. मैंने कहा, देखो जो आदमी चल सकता है वो नाच भी सकता है. मैंने डांस मास्टर से कहा कि कल सुबह जब वो आए तो एक ही टेक लेना. उसमें वो जो भी करे बस में सब आर्टिस्ट को बोलना ताली बजाए. यही हुआ. अगली सुबह पहले टेक में उसने बहुत गंदा डांस किया. लेकिन सबने ताली बजाई. और अगले शॉट में बढ़ गए. तारीफ सुनकर वो चौड़ा हो गया. एक्टर की खुराक तारीफ ही होती है. फिर शूटिंग सही से हुई और जो गंदा शॉट था उसे हमने अंत में फिर फिल्माया.”

 आर. डी. बर्मन / पंचम, को ब्रेक दिया

महमूद ही थे जिन्होंने आर. डी. बर्मन को बतौर म्यूजिक डायरेक्टर पहला ब्रेक दिया. फिल्म थी ‘छोटे नवाब’ जो 1961 में आई. इसकी कहानी महमूद के पिता मुमताज अली ने लिखी थी. इसमें उन्होंने छोटे नवाब का लीड रोल किया था.

 अरुणा ईरानी से अफेयर का सच

महमूद और अरुणा ईरानी का अफेयर हुआ करता था. एक बार तबस्सुम ने अरुणा से एक शो में पूछ भी लिया था कि “महमूद ने आपको छोड़ा क्यों?” उसके बाद महमूद ने उन्हें फोन करके कहा कि “तुमने अरुणा से ऐसा क्या पूछ लिया कि लोग हर जगह मुझे घेर रहे हैं.” दरअसल, महमूद के साथ अरुणा ईरानी ने ‘औलाद’ (1968), ‘हमजोली’ (1970), ‘देवी’ (1970), ‘नया जमाना’ (1971), ‘मन मंदिर’ (1971), ‘मैं सुंदर हूं’ (1971), ‘लाखों में एक’ (1971), ‘जौहर महमूद इन हॉन्ग कॉन्ग’ (1971), ‘अलबेला’ (1971), ‘गरम मसाला’ (1972) जैसी फिल्मों में काम किया था. महमूद की ‘बॉम्बे टू गोवा’ में भी अरुणा थीं. जहां पहली बार खासतौर पर उन्हें नोटिस किया गया. तब अरुणा की फिल्म ‘कारवां’ भी लगी हुई थी. दोनों ही सिल्वर जुबली हुईं. अरुणा को लगा कि अब उनके घर के बाहर निर्माता लाइन लगाकर खड़े होंगे. उन्होंने चाय सर्व करने के लिए नई क्रॉकरी भी खरीदी लेकिन अगले तीन साल एक भी प्रोड्यूसर चल कर उनके पास नहीं आया. इसका कारण महमूद से उनकी नजदीकी को माना जाता है जो कथित तौर पर अरुणा का करियर संचालित कर रहे थे. बहुत बाद में एक इंटरव्यू में अरुणा ने कहा:

हां, मैं उनके साथ दोस्ताना थी. यहां तक कि मैं ओवर-फ्रेंडली थी. आप इसे आकर्षण भी कह सकते हैं, दोस्ती भी या कुछ भी. लेकिन हम लोगों ने कभी शादी नहीं की थी. हम प्यार में भी नहीं थे.





करियर में आए तीन सालों के उस अकाल के बारे में अरुणा का कहना था, “लोगों ने हमारे रिश्ते को गलत समझ लिया था. उन्हें लगा होगा कि हम शादी कर चुके हैं. उन्हें (निर्माताओं को) लगा होगा कि वो (महमूद) मुझे काम नहीं करने देंगे. हमने कई फिल्में साथ कीं और अच्छी कैमिस्ट्री रही हमारी. इसके अलावा, मैं उस उम्र में थी जब आकर्षण हो जाता है. मैं बहक गई थी. लोग बातें बना रहे थे, हमारे बारे में लिखा जा रहा था लेकिन मैंने कभी स्पष्टीकरण नहीं दिया. मुझे लगा मीडिया के लोग मेरे पक्ष की कहानी सुनने भी आएंगे. मुझे पछतावा है कि मैं तब क्यों नहीं बोली. मेरी चुप्पी ने मेरे करियर को नुकसान पहुंचाया.”

 एक्टर और स्टार लोग जब महमूद से डरते थे

‘बॉम्बे टू गोवा’ में महमूद और उनके भाई अनवर कंडक्टर और बस ड्राइवर बने थे. वो एक तरीके से केंद्रीय पात्र थे. अमिताभ और अरुणा ईरानी हीरो-हीरोइन थे. शत्रुघ्न सिन्हा विलेन थे. अमिताभ के करियर की ये पहली प्रमुख फिल्म थी. वो भी बेरोजगारी के दौर के बाद मिली थी. महमूद ने उन्हें घर में आसरा दे रखा था. फिल्म दी थी. खुद तब कद्दावर सेलेब्रिटी हुआ करते थे. अमिताभ उनसे बहुत डरते थे. फिल्म में एक सीन में उन्हें अरुणा ईरानी का हाथ पकड़ना था लेकिन बहुत डरे हुए थे क्योंकि तब महमूद-अरुणा का अफेयर चल रहा था. वे कैसे उनका हाथ पकड़ लें? लेकिन ये देख महमूद ने उन्हें कहा कि सिर्फ काम पर ध्यान दो बाकी सब भूल जाओ कि कौन क्या कहां है? उसके बाद उन्होंने वो सीन किया. ये भी कहा जाता है कि अपने शीर्ष पर होने के दौर में महमूद जब सेट पर आते तो हीरो लोग भी शर्ट के बटन बंद करके खड़े हो जाते थे.

 आज जो फीस बड़े सितारे पाते हैं, वो तब महमूद लेते थे

‘मैं सुंदर हूं’ (1971) फिल्म में एक्टर विश्वजीत की फीस थी 2 लाख रुपये और उसी फिल्म के लिए महमूद को 8 लाख रुपये दिए गए. इससे एक साल पहले रिलीज हुई फिल्म ‘हमजोली’ में जीतेंद्र हीरो थे लेकिन वहां भी अन्य भूमिका कर रहे महमूद को ज्यादा फीस मिली. बहुत बाद के वर्षों में खुद महमूद ने कहा था कि जितनी फीस अमिताभ सुपरस्टार बनने के बाद लेते थे, उतनी वे अपने समय में लिया करते थे.

 किशोर कुमार की एक्टिंग के कायल थे

मुंबई फिल्म इंडस्ट्री में सिर्फ किशोर कुमार ही थे जिनके अभिनय से महमूद घबराते थे. एक बार उनके साथी एक्टर बीरबल ने पूछा कि वे किस एक्टर की एक्टिंग से डरते हैं तो उनका जवाब था, “मैं सभी एक्टर्स की सीमाएं जानता हूं लेकिन किशोर कुमार का पता लगाना मुश्किल है. वो अपने किरदार के साथ कभी भी कुछ भी कर जाते हैं.” इसीलिए जब उन्होंने ‘पड़ोसन’ फिल्म प्रोड्यूस की तो उसमें किशोर कुमार को भी लिया. उस फिल्म की हाइलाइट ही महमूद और किशोर की जुगलबंदी थी. फिल्म ‘साधू और शैतान’ में दोनों ने साथ काम किया था. 

 जब महमूद को किशोर ने काम नहीं दिया

जब किशोर कुमार स्थापित सिंगर-एक्टर-डायरेक्टर हो चुके थे तब उनसे परिचित महमूद उनके पास गए और कहा कि उन्हें भी अपनी फिल्म में मौका दें. किशोर ने कथित तौर पर उन्हें काम देने से मना कर दिया और कहा कि “ऐसे आदमी को क्यों मौका दूं जो आगे चल कर मेरा ही प्रतिद्वंदी हो जाने वाला है”. इस पर महमूद नाराज नहीं हुए. उन्होंने कहा, “कोई बात नहीं लेकिन जब मैं फिल्म बनाऊंगा तो उसमें आपको जरूर लूंगा”. फिर जब अपने बैनर की फिल्म ‘पड़ोसन’ उन्होंने बनाई तो उसमें किशोर कुमार को लिया.

 राजेश खन्ना का सुपरस्टारडम एक थप्पड़ में उतार दिया

ये वो दौर था जब राजेश खन्ना सुपरस्टार थे. लेकिन महमूद भी सुपरस्टार रह चुके थे और बतौर एक्टर-डायरेक्टर बिजी थे. उन्होंने अपनी फिल्म ‘जनता हलवदार’ (1979) में राजेश को लिया. हेमा मालिनी हीरोइन थीं. महमूद अपने फार्म हाउस में फिल्म की शूटिंग कर रहे थे. वहां एक दिन महमूद का एक बेटा राजेश से मिला और सीधे दुआ-सलाम करके निकल गया. राजेश इससे नाराज हो गए कि सिर्फ हैलो क्यों बोला? ये कारण था या कुछ और कि वे सेट पर लेट आने लगे. शूटिंग में दिक्कत होने लगी. रोज़ महमूद को घंटों इंतजार करना पड़ रहा था. वे डायरेक्टर भी थे और एक्टर भी. ऐसे में एक दिन महमूद ने सबके सामने राजेश खन्ना को थप्पड़ लगा दिया. वे बोले, “आप सुपरस्टार होंगे अपने घर के, मैंने फिल्म के लिए आपको पूरा पैसा दिया है और आपको फिल्म पूरी करनी ही पड़ेगी.” इसके बाद फिल्म का काम सही से चला.

 रिहर्सल नहीं करते, जो करते लाइव करते थे

अपने दृश्यों में और निजी रूप से भी महमूद की मौजूदगी बहुत हावी होने वाली थी. वे डायलॉग बोलते थे तो बड़े एक्टर्स और सुपरस्टार भी घबरा जाते थे. क्योंकि शॉट देते हुए वे पूरी तरह improvise करते थे. सामने वाले को पता नहीं होता था कि वे क्या करने वाले हैं? उनके साथ कई फिल्मों में काम कर चुके जूनियर महमूद ने एक इंटरव्यू में बताया था, “जब शूट खत्म होता था तो महमूद के लिए खूब तालियां बजाई जाती थीं. वे अकेले हास्य कलाकार थे जिनकी फोटो पोस्टर में हीरो के साथ रहती थी. चाहे हीरो कोई भी हो, कितना भी बड़ा हो. दर्शक फिल्म देखने सिर्फ इसलिए जाते थे क्योंकि उसमें महमूद होते थे. डायरेक्टर लोगों को ये बात अच्छे से मालूम थी कि अगर फिल्म हिट करवानी है तो उन्हें लेना ही होगा. खास बात ये कि महमूद को कभी किसी ने किसी सीन की रिहर्सल करते हुए नहीं देखा था. वे जो भी करते थे लाइव करते थे.”

 ‘पड़ोसन’ में किशोर कुमार, मन्ना डे के साथ गाया

1968 में रिलीज हुई ‘पड़ोसन’ फिल्म में “एक चतुर नार” गाने के दौरान महमूद उलझन में फंस गए थे. इस गाने में एक क्लासिकल और एक देसी उस्ताद के बीच मुकाबला दिखाया गया है. एक ओर महमूद थे जो सायरा बानो के कैरेक्टर बिंदू के तमिल उस्ताद बने थे. दूसरी ओर सुनील दत्त के कैरेक्टर भोला के गुरु थे किशोर कुमार. अपनी-अपनी खिड़की में खड़े होकर दोनों जुलगबंदी करते हैं. किशोर कुमार ने गाना कंपोज किया था. गाने के अंत में क्लासिकल गाने वाला गुरु हार जाता है. किशोर के साथ गायकी के लिए महमूद ने मन्ना डे से बात की. वे बिलकुल राजी नहीं थे कि बेसुरे देसी गुरु से वे कैसे हार सकते हैं. ऐसे कौन से सुर हैं जो उनके सुर को हरा देंगे. तो महमूद ने मन्ना को बताया कि किशोर ने अपने सुर बना लिए हैं जो ऊट-पंटाग थे. खैर, बहुत मिन्नत के बाद मन्ना डे माने. लेकिन गाने में वो हिस्सा जहां मन्ना डे के सुर गड़बड़ा जाते हैं, बताया जाता है कि वो हिस्सा महमूद ने गाया

Source - The lallan Top

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