लेजेंडरी संगीतकार मोहम्मद जहुर ख्य्याम हाशमी का 92 साल की उम्र में निधन हो गया. पद्मभूषण से सम्मानित खय्याम 28 जुलाई को अपनी आर्मचेयर से गिरे थे और उसके बाद से ही अस्पताल में भर्ती थे. इसके चार दिनों बाद ही उनकी पत्नी जगदीप कौर भी अस्पताल में एडमिट हुईं थी क्योंकि उनके ब्लड शुगर में काफी गिरावट आई थी. दोनों ही जुहू अस्पताल के आईसीयू यूनिट में भर्ती रहे जहां से कुछ दिनों बाद खय्याम की पत्नी को डिस्चार्ज कर दिया गया है. हालांकि डिस्चार्ज होने के बाद भी उनके दिमाग में लगातार ये चल रहा था कि ख्य्याम साहब उनके बिना कैसे गुजारा करेंगे.
कुछ ऐसी है ख्य्याम साहब और उनकी पत्नी जगदीप कौर की लव स्टोरी. साल 1954 से जारी हुई ये प्रेम कहानी ख्य्याम साहब के फना होने तक बदस्तूर जारी रही. ख्य्याम साहब के प्रति अपने प्रेम के बारे में बात करते हुए जगदीप कौर ने कहा था कि आखिर कैसे कोई शाम-ए-गम की कसम गाना सुनकर उनके प्यार में ना पड़ जाए?
पंजाब की एक रसूखदार परिवार में जन्मी जगदीप कौर बॉलीवुड प्लेबैक सिंगर बनना चाहती थीं. वे इसके लिए मुंबई आ गईं. मुंबई आने के बाद एक बार दादर रेलवे स्टेशन के ओवरब्रिज पर उन्हें लगा कि कोई उनका पीछा कर रहा है, वे सतर्क हो गईं और अलार्म बजाने ही वाली थीं कि तभी वो शख्स उनके पास आया और म्यूजिक कंपोजर के तौर पर अपना परिचय दिया. ये बात 1954 की है. इसी के साथ दोनों के बीच दोस्ती की शुरुआत हुई जो शादी में बदली. कौर के पिता के विरोध के बावजूद दोनों ने शादी रचाई और इसे बॉलीवुड की पहली इंटरकास्ट मैरिज भी माना जाता है.
शादी के बाद जब भी ख्य्याम साहब उन्हें किसी फिल्म में गाने के लिए कहते तो वे तैयार हो जातीं. उन्होंने उमराव जान के लिए भी अपनी आवाज दी थी. जगदीप ने एक इंटरव्यू में ये भी कहा था कि ख्य्याम साहब अपने प्रोड्यूसर्स से भले नाराज हो जाएं लेकिन अपने सिंगर्स से कभी नाराज नहीं होते थे. गौरतलब है कि ख्य्याम ने कई दिग्गज सिंगर्स के साथ भी काम किया है. उन्होंने ये भी बताया कि राज कपूर अपनी फिल्म के लिए उस संगीतकार को लेना चाहते थे जिन्होंने महान फिलोसॉफर दोस्तोवोस्की की किताब क्राइम एंड पनिशमेंट पढ़ी हो. ख्य्याम ने वो किताब पढ़ी थी और उन्हें राज कपूर की फिल्म फिर सुबह होगी के लिए म्यूजिक कंपोज करने का मौका मिला था.
अपने शानदार काम के लिए उन्हें कई सारे अवॉर्ड भी मिले हैं. उन्हें साल 2007 में संगीत नाटक एकेडमी अवॉर्ड और साल साल 2011 में पद्म भूषण जैसे सम्मानों से नवाजा गया. कभी-कभी और उमराव जान के लिए उन्हें फिल्मफेयर अवॉर्ड और उमराव जान के लिए नेशनल अवॉर्ड भी मिला.
साल 1953 में फुटपाथ फिल्म से उन्होंने अपने बॉलीवुड करियर की शुरुआत की. साल 1961 में आई फिल्म शोला और शबनम में संगीत देकर खय्याम साहब को पहचान मिलनी शुरू हुई. आखिरी खत, कभी-कभी, त्रिशूल, नूरी, बाजार, उमराव जान और यात्रा जैसी फिल्मों में धुनें दीं.
Source - Aaj Tak