जब भी फिल्म जगत में बड़े फिल्म निर्देशकों की बात होती है उसमें जापान के फिल्म निर्देशक और स्क्रीनराइटर अकीरा कुरोसावा का नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है. उन्होंने साल 1943 में सांसिरो सुगाता नामक एक फिल्म से अपने करियर की शुरुआत की. अपने करियर के दौरान उन्होंने क्लासिक हिट्स दिए जिस वजह से उन्हें विश्वभर में सराहा गया.
अकीरा कुरोसावा का जन्म टोकयो में 23 मार्च, 1910 में हुआ था. उनके पिता समुराई फैमिली से थे और वे मिलिट्री अफसर थे. जबकी उनकी मां मरचेंट फैमिली से थीं. उनके पिता बहुत सख्त मिजाज के थे. वे समुराई एथिक्स और वेल्यूज को बहुत मानते थे. यहां तक की अगर उनकी पत्नी समुराई विचारधाराओं और सिद्धांतों पर चलने में चूकती थीं तो वे उन्हें प्रताणित करते थे. कुरोसावा के जीवन पर भी इसका असर पड़ा. उन्होंने एक दफा कहा था कि मैं एक ऐसी लाइन से आता हूं जहां बिना किसी बात के लोग कुछ ज्यादा इमोशनल रहते हैं.
स्कूल के दिनों में अकीरा को उनके साथी क्राए बेबी कह कर बुलाते थे. मगर वक्त के साथ साथ उनमें सकारात्मक बदलाव हुए. उन्होंने साल 1930 में अपने फिजिकल टीचर को मात दे दी थी. van Gogh and Cézanne से प्रेरित हो कर वे पेंटर बनना चाहते थे. मगर जब उन्होंने ये महसूस किया कि उनमें एक खास पेंटर बनने के कोई गुण नहीं हैं तो उन्होंने ये ख्वाब छोड़ दिया. इसके बाद उन्होंने साहित्य की तरफ अपना रुख किया. मगर इसमें भी उन्हें लगा कि वे ज्यादा अच्छे नहीं हैं. मगर बाद में जब वे फिल्म निर्देशक बनें तो इन दोनों चीजों का इस्तमाल उन्होंने अपनी फिल्मों के जरिए बेखूबी किया.
जब वो जवान थे तब उन्हें ऐसे सपने आते थे जैसे वे रेल की पटरी के एक तरफ हैं और उनका परिवार दूसरी तरफ. एक कुत्ता था जो उनके और परिवार के बीच का संदेश एक-दूसरे तक पहुंचाता था. मगर तभी कुछ समय में एक ट्रेन आती है और कुत्ते को आधा काट देती है. इस सपने का असर उन पर इस कदर पड़ा था कि जब भी वे टूना (फिश) खाने जाते थे तो उन्हें ये सपना याद आ जाता था. इसी के चलते उन्होंने 30 साल तक टूना नहीं खाया.
प्रोफेशनल फ्रंट की बात करें तो उनकी सफल फिल्मों में द सेवन समुराई, राशोमोन, ब्लड ऑन द थ्रोन जैसी फिल्में शुमार की जाती हैं जिसे ऑल टाइम क्लासिक की श्रेणी में गिना जाता है. साल 1990 में उन्हें लाइफटाइम अचीवमेंट एकेडमी अवॉर्ड से नवाजा गया था. उन्हें अमेरिकन डायरेक्टर जॉर्ज लूकस और स्टीवन स्पिलबर्ग ने ये अवॉर्ड दिया था.
स्टीवन स्पीलबर्ग ने अकीरा के बारे में बात करते हुए कहा था- ''वे हमारे समय के विजुअल शेक्सपीयर रहे हैं. वे एकलौते ऐसे फिल्म निर्देशक रहे हैं जिन्होंने मरते दम तक फिल्में बनाना और स्क्रिप्ट लिखना जारी रखा. इस बात की परवाह किए बिना की ये फिल्में क्लासिक की श्रेणी में आएंगी या नहीं. वे एक सेल्युलॉइड पेंटर भी थे. वे फिल्म में 100 प्रतिशत प्रभाव छोड़ते थे.''
द मोस्ट ब्यूटीफुल, अ वंडरफुल संडे, स्ट्रे डॉग, रेड बीयर्ड, द बेड स्लीप वेल, रेन और मडाडायो जैसी फिल्में बनाईं. साल 1993 में आई फिल्म माडाडायो उनकी आखिरी फिल्म साबित हुई. 6 सितंबर, 1998 को जापान में उनका निधन हो गया. आज भले ही अकीरा कुरोसावा हमारे बीच ना हों मगर उनके द्वारा बनाई गई क्लासिक फिल्में, हमें जीवन के विभिन्न दृष्टिकोणों से रूबरू कराती हैं.
Source - Aaj Tak