90 के दशक का हिंदी सिनेमा. माधुरी, जूही, उर्मिला, करिश्मा, सोनाली, ऐश्वर्या जैसी परीचेहरा हसीनाओं का दर्शकों के सपनों पर कब्ज़ा था. टिपिकल भारतीय उम्मीदों पर ये सारी दोशिज़ाएं पूरी तरह खरी उतरती थी. गोरी-चिट्टी लड़की, जो ख़ूबसूरती के तमाम पैमानों पर खरी उतरे. उन तमाम फंतासियों में फिट हो जाए, जो एक एवरेज इंडियन मेल की ज़िंदगी का साइड ट्रैक होती है.
लेकिन इसी दशक में एक ऐसी लड़की भी इन्हीं दर्शकों से रूबरू हुई, जिसने सौंदर्य के प्रतिमानों को अगर बदला नहीं तो हिला ज़रूर दिया.
अपनी सांवली रंगत में इतनी प्यारी लगती थी कि गौर वर्ण के कई उपासक रातोंरात अपनी लॉयल्टी स्विच कर गए. ऊपर से बोनस ये कि असाधारण एक्ट्रेस थी. सिर्फ ग्लैम डॉल नहीं थी, अभिनय करना जानती थी. उन रोल्स में भी जहां उसकी मौजूदगी महज़ फिलर की तरह थी. रफ्ता-रफ्ता अपना एक विशाल फैन क्लब बनाने में कामयाब रही काजोल मुखर्जी, हिंदी सिनेमा को मिला शानदार गिफ्ट है.
आज भी काजोल का शुमार उन अभिनेत्रियों में है, जिसके पोस्टर सबसे ज़्यादा बिकते हैं. ऐसा कोई ब्यूटी पार्लर मुश्किल ही मिलेगा, जिसमें काजोल की ‘कुछ कुछ होता है’ की दुल्हन वाली तस्वीर न लगी हो.
5 अगस्त जन्मदिन हुआ करता है काजोल का. आइए उनकी वो 3 भूमिकाएं याद कर लें, जिन्होंने काजोल को हमारी ज़िंदगी में गहरा पैबस्त कर दिया.
ईशा दीवान (गुप्त, 1997)
काजोल की बात हो और ‘गुप्त’ की बात न हो ये नामुमकिन है. हिंदी सिनेमा ने एंटी हीरो तो बहुत देखे, लेकिन एंटी हीरोइन का खाना हमेशा ख़ाली ही रहा. इक्का-दुक्का उदाहरण हो तो हो. भारतीय सिनेमा की हीरोइन्स की पूरी जमात भली लड़की बने-बने पूरी फिल्म निकाल देती है. जो भली नहीं होती, वो नायिका भी नहीं होती. ऐसे में एक नेगेटिव रोल करके काजोल ने न सिर्फ घिसी हुई पगडंडी से अलग किसी ज़मीन पर कदम रखा, बल्कि वहां अपने क़दमों के न मिटने वाले निशान बनाने में कामयाब भी रही.
हीरो का महिमामंडन करने वाले हमारे सिनेमा में हीरोइन तमाम तारीफें लूट ले जाए, ये एक दुर्लभ नज़ारा होता है. ईशा दीवान की जुनूनी मुहब्बत से दर्शकों को डर नहीं लगा, बल्कि सहानुभूति ही हुई. कितने ही ऐसे थे जो उसके ख़ूनी निकल आने के बावजूद, पूरी संजीदगी से चाहते थे कि साहिल उसे ही मिले.
क्लाइमेक्स सीन में शीतल (मनीषा कोइराला) के ये कहने पर कि ‘मैं साहिल के लिए अपनी जान दे सकती हूं’, वो ज़हर बुझे लहज़े में कहती है,
“यही तो फर्क है. जान मैं भी दे सकती हूं, लेकिन उसे अपना बनाने के लिए हमारे बीच आने वाले की जान ले भी सकती हूं.”
स्पष्ट डायलॉग डिलीवरी और आंखों से फूटती नफरत. कोई हैरानी नहीं कि काजोल इस सीन में महफ़िल लूट ले जाती है. इतना कनेक्ट हो जाते हैं लोग उससे कि एक बड़ा तबका उसकी कामयाबी की दुआएं करता है. ‘गुप्त’ बिलाशक काजोल के करियर का कोहिनूर है.
मंदिरा ख़ान (माई नेम इज़ ख़ान, 2010)
प्यार और अपनी ममता के बीच पिसती हुई मंदिरा. अपने बेटे की मौत की वजह वो अपना नया सरनेम मानती है, जो उसके नाम के आगे लगने की वजह वो खुद बनी थी. न वो ‘रिजवान ख़ान’ से शादी करती, न उसके बेटे समीर के आगे ‘ख़ान’ लगता और न वो 9/11 के बाद हेट क्राइम का शिकार बनता. खुद की रूह पर ये ज़ख्म लेकर जीना मुहाल है. ऐसे में क्या करें वो? खुद की सज़ा खुद तय करती है. अपनी ज़िंदगी से उस शख्स को धकेल कर निकालती है, जिसने उसकी सूनी ज़िंदगी में रंग भरे थे. जिससे मिलकर उसने फिर से जीना सीखा था.
शाहरुख़ ख़ान-काजोल की जगतप्रसिद्ध केमिस्ट्री को एक नया आयाम बख्शा था इस फिल्म ने. आज भी वो सीन ज़हन में ताज़ा है जब मंदिरा, रिजवान ख़ान पर चीख़-चीख़ कर अपने गिल्ट को दबाने की नाकाम कोशिश करती है.
अंजलि शर्मा (कभी ख़ुशी कभी ग़म, 2001)
इंग्लिश में एक शब्द होता है. Lively. मने ज़िंदगी से भरपूर. जिसकी नस-नस में जीने की अदम्य इच्छा लहलहाती हो. ऐन ऐसी ही थी अंजलि शर्मा. कोई दो मिनट मिल ले, तो दुनिया जहान के डिप्रेशन से उबर जाए. कोई हैरानी नहीं थी कि राहुल रायचंद को उससे पहली झलक में प्यार हो जाता है. गौर करें हम पहली झलक कह रहे हैं, पहली निगाह नहीं. निगाह भी मिलने से पहले जिससे इश्क हो जाए, उसमें कुछ तो ख़ास होगा ही. काजोल के इस रोल को इस लिस्ट में रखने की वजह ही ये है कि पॉजिटिविटी का समंदर थी अंजलि शर्मा.
शाहरुख़ से अपनी पहली मुलाक़ात वाला सीन हो या अमिताभ की पार्टी में दो बार ‘गमला’ तोड़ना. इस लड़की से बार-बार प्यार हो जाता है. भारत की जीत पर सड़कों पर बेधुंद होकर नाचती अंजलि खुशियों का चलता-फिरता वॉल्ट थी.
इसके अलावा भी काजोल की कुछ ऐसी भूमिकाएं हैं जिन्हें बहुत ज़्यादा सराहा गया. ‘दिलवाले दुल्हनियां ले जाएंगे’ की सिमरन को कौन भुला सकता है! या ‘फना’ की जूनी! ‘कुछ कुछ होता है’ की अंजलि हो या ‘प्यार किया तो डरना क्या’ की मुस्कान ठाकुर. काजोल से हमेशा प्यार होता रहा.
जाते-जाते उस गाने को देख लेते हैं जिसने फैंटसीज़ को हकीकत की ज़मीन पर उतार दिया. जिसने सेंशुअलिटी शब्द के नए-नए मतलब उजागर किए. शाहरुख़-काजोल की रुमानियत तो परदे पर कई बार बिखेरी गई है, लेकिन डिज़ायर को, लालसा को इतनी ख़ूबसूरती से पेश करता ये गीत इस पेयर का मेरा ऑल टाइम फेवरेट है.
Source - The lallan Top