3 Dec 2019

फिल्म इंडस्ट्री में सेक्सुअल हरासमेंट एक सच्चाई है: कोंकणा सेन



साल 2018 में हुए YKA सम्मिट के पहले दिन के आखिरी सत्र में सीनियर जर्नलिस्ट ऋतुपर्णा चटर्जी ने मशहूर फिल्म अभिनेत्री और निर्देशक कोंकणा सेन शर्मा से बातचीत की। मंच था फेमिनिस्ट अड्डा का और बातचीत का विषय था ‘हमारी कहानी, हमारी ज़ुबानी’। यह सेशन फिल्मों में महिला फिल्मकारों और कलाकारों के अनुभव पर आधारित था।

पिछले साल आई फिल्म ‘डेथ इन द गंज’ से अपने निर्देशन करियर की शुरुआत करने वाली कोंकणा ने अपने फिल्मों से जुड़े अनुभव, अपने स्टार किड होने के प्रिविलेज, इंडस्ट्री में महिलाओं के प्रति होने वाले सेक्सुअल हरासमेंट और मौजूदा राजनीतिक हालातों पर भी खुल के बातें की।

शुरुआत फीमेल गेज पर डिस्कशन से हुई। फीमेल गेज के बारे में बताते हुए कोंकणा ने कहा,

जब एक महिला कंटेंट क्रिएटर होती है, तो निश्चित रूप से एक अलग नज़रिया देखने को मिलता है लेकिन यह भी ज़रूरी नहीं है कि सिर्फ इस वजह से वह कंटेंट संवेदनशील हो या ज़्यादा ऑथेंटिक हो।

एक फिल्मकार के फेमिनिस्ट होने की आवश्यकता के सवाल पर ‘लिपस्टिक अंडर माय बुर्का’ की अभिनेत्री ने कहा, “यह क्रिएटर की स्वतंत्रता है कि वह पितृसत्तात्मक या फिर एक फेमिनिस्ट नज़रिया दिखाए। यह ज़रूरी नहीं है कि सब फेमिनिस्ट ही हो। ”

फिल्मों में महिलाओं के रिप्रज़ेंटेशन का आभाव एक बड़ा सवाल रहा। इस पर कोंकणा ने कहा, “महिलाओं का और ज़्यादा से ज़्यादा रिप्रज़ेंटेशन होना ज़रूरी है ताकि आने वाली जनरेशन को प्रेरणा स्त्रोत मिल सकें।”

“महिलाओं के रिप्रजेंटेशन के साथ-साथ हमें ये भी ध्यान में रखना चाहिए कि किस उम्र की महिलाओं को मौका मिल रहा है। मैंने देखा है कि अधिकांशतः महिलाओं को मौका सिर्फ उनकी यंग ऐज में ही मिलता है। किसी भी इंडस्ट्री में उम्रदराज़ महिलाओं के अनुपात में यंग लड़कियों को ज्यादा मौका मिल रहा है।”

सेक्सुअल हरासमेंट के अनुभवों पर कोंकणा का कहना था, “चूंकि मेरी फैमिली फिल्मों से जुड़ी रही है इसलिए प्रिविलेज़्ड होने के नाते मुझे पर्सनली सेक्सुअल हरासमेंट का सामना नहीं करना पड़ा लेकिन मैंने दूसरे लोगों से उनके ऐसे अनुभव सुने हैं इसलिए फिल्म इंडस्ट्री में सेक्सुअल हरासमेंट एक सच्चाई है।”

फेमिनिज़्म के बारे में लोगों की अवधारणा के बारे में उन्होंने कहा, “फेमिनिज़्म एक कॉम्प्लेक्स कॉन्सेप्ट बन गया है। इसके इतने सारे अलग-अलग रूप हैं जिस वजह से लोग क्लियर नहीं हैं कि फेमिनिज़्म दरअसल है क्या। इस वजह से भी कई लोग फेमिनिस्ट कहलाने से बचना चाहते हैं।”

नेपोटिज़्म पर बात करते हुए कोंकणा का कहना था, “जो लोग सुहाना खान के किसी मैगज़ीन के कवर पर आने को लेकर इतने कंसर्नड थे उन्हें ये पता होना चाहिए कि देश में और भी कई सारी चीज़ें हैं जिनके लिए चिंतित होना चाहिए बजाए इसके।”

मैं ये बात मानती हूं कि मैं काफी प्रिविलेज्ड हूं। मेरी फैमिली बैकग्राउंड की वजह से मेरे पास कॉन्टेक्ट्स थे जिस वजह से ब्रेक मिलने में ज़्यादा दिक्कत नहीं हुई।

सत्ता के खिलाफ बोलने की आज़ादी पर भी कोंकणा ने मुखर रूप से कहा, “लोगों को अलग-अलग विचारधाराओं से ऑब्जेक्शन नहीं होना चाहिये। अगर मैं ये कहूं कि मुझे तत्कालीन सरकार पसंद नहीं है तो किसी को दिक्कत नहीं होनी चाहिए। अगर मैंने अभी की सरकार के पक्ष में वोट नहीं किया तो इस सरकार के विपक्ष में बोलने की भी आज़ादी होनी चाहिए।”

Source - Yooth Ki Awaj 

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