अपनी शहनाई से सबके दिलों में मिठास घोलने वाले मशहूर शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खान को गूगल ने डूडल बना कर श्रद्धांजलि अर्पित की है। आज यानि बुधवार को शहनाई के जादूगर का 102 वां जन्मदिल है। गूगल डूडल में उस्ताद बिस्मिल्लाह खान को एक सफेद रंग की पोशाक पहनकर, शहनाई बजाते हुए दिखा गया है। वह पूरी तरह से शहनाई बजाने में मग्न दिखाई दे रहे हैंथ। उनके पार्श्व में एक ज्यामितीय स्टाइल में एक पैटर्न है और Google लिखा हुआ है। उनकी शहनाई से एक धुन निकल रही है जिसे दुनिया भर में सुना जा रहा है। बता दें कि इस डूडल को चेन्नई के कलाकार विजय कृष ने बनाया है। आइए जानते हैं बिस्मिल्लाह खान के जिंदगी से जुड़े कुछ दिलचस्प किस्सें।
नाम के पीछे अनोखी कहानी
उस्ताद बिस्मिल्लाह खान का जन्म बिहार के डुमरांव में 21 मार्च 1916 को एक मुस्लिम परिवार में पैगम्बर खां और मिट्ठन बाई के यहां हुआ था। उस्ताद बिस्मिल्ला ख़ाँ के नाम के साथ एक दिलचस्प वाकया भी जुड़ा हुआ है। उनका जन्म होने पर उनके दादा रसूल बख्श ख़ाँ ने उनकी तरफ़ देखते हुए 'बिस्मिल्ला' कहा। इसके बाद उनका नाम 'बिस्मिल्ला' ही रख दिया गया। उनका एक और नाम 'कमरूद्दीन' था।
ख़ान का लाल किला से था खास कनेक्शन
भारत की आजादी और बिस्मिल्लाह की शहनाई के बीच भी बहुत गहरा रिश्ता है। 1947 में आजादी की पूर्व संध्या पर जब लालकिले पर देश का झंडा फहराया जा रहा था तब उनकी शहनाई भी वहां आजादी का संदेश बांट रही थी। तब से लगभग हर साल 15 अगस्त को प्रधानमंत्री के भाषण के बाद बिस्मिल्ला का शहनाई वादन एक प्रथा बन गयी। खान ने देश और दुनिया के अलग अलग हिस्सों में अपनी शहनाई की गूंज से लोगों को मोहित किया। अपने जीवन काल में उन्होंने ईरान, इराक, अफगानिस्तान, जापान, अमेरिका, कनाडा और रूस जैसे अलग-अलग मुल्कों में अपनी शहनाई की जादुई धुनें बिखेरीं।
शहनाई ही थी उनकी बेगम
भारतीय शास्त्रीय संगीत और संस्कृति की फिजा में शहनाई के मधुर स्वर घोलने वाले प्रसिद्ध शहनाई वादक बिस्मिल्ला ख़ाँ शहनाई को अपनी बेगम कहते थे और संगीत उनके लिए उनका पूरा जीवन था। पत्नी के इंतकाल के बाद शहनाई ही उनकी बेगम और संगी-साथी दोनों थी, वहीं संगीत हमेशा ही उनका पूरा जीवन रहा।
भारत रत्न से किया सम्मानित
संगीत-सुर और नमाज़ इन तीन बातों के अलावा बिस्मिल्लाह ख़ां की जिंदगी में और दूसरा कुछ न था। संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, पद्म श्री, पद्म भूषण, पद्म विभूषण, तानसेन पुरस्कार से सम्मानित उस्ताद बिस्मिल्लाह खान को साल 2001 में भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
आखिर इच्छा अधूरी रह गई
इंडिया गेट पर शहनाई बजाने की इच्छा रखने वाले उस्ताद बिस्मिल्लाह खान की आखिरी इच्छा अधूरी ही रही और उन्होंने 21 अगस्त 2006 को इस दुनिया में अंतिम सांस ली और उस अंतिम सांस के साथ आत्मा को परमात्मा से जोड़ने वाली उनकी शहनाई की धुनें हमेशा के लिए खामोश हो गई।
Source-Jagran